बोनस शेयर बनाम स्टॉक स्प्लिट: अंतर, प्रभाव और जानकारियाँ

WhatsApp Channel Join Now
Telegram Group Join Now

Table of Contents

निवेश की दुनिया में बोनस शेयर और स्टॉक स्प्लिट का महत्व

स्टॉक मार्केट की दुनिया में बहुत सारे ऐसे टर्म्स हैं जिनका नाम अक्सर सुनाई देता है लेकिन उनकी गहराई को हर कोई नहीं समझता। “बोनस शेयर” और “स्टॉक स्प्लिट” दो ऐसे शब्द हैं जो ज्यादातर निवेशकों के लिए रहस्यमयी होते हैं, खासकर नए निवेशकों के लिए। अगर आपने हाल ही में स्टॉक मार्केट में रुचि ली है या फिर आप पहले से ही निवेश कर रहे हैं, तो इन दोनों टर्म्स की अच्छी समझ होना बेहद जरूरी है।

ये दोनों घटनाएं सीधे आपके पोर्टफोलियो को प्रभावित करती हैं – यानी आपके पास कितने शेयर हैं, उनकी कीमत क्या है, और दीर्घकाल में आपकी संपत्ति किस तरह से बढ़ सकती है। इनका कोई सीधा नकद लाभ नहीं होता, लेकिन इनका मनोवैज्ञानिक और बाजार व्यवहार पर बड़ा असर होता है।

इनके जरिए कंपनियां न सिर्फ निवेशकों को आकर्षित करती हैं, बल्कि यह भी दिखाती हैं कि उनकी बैलेंस शीट कितनी मजबूत है। आइए इस लेख में विस्तार से समझते हैं कि बोनस शेयर और स्टॉक स्प्लिट वास्तव में क्या हैं, कैसे काम करते हैं, और निवेशकों के लिए इनमें से कौन-सा अधिक लाभदायक हो सकता है।

क्यों यह विषय हर निवेशक को जानना चाहिए?

इस विषय की प्रासंगिकता केवल तकनीकी जानकारी तक सीमित नहीं है। जब भी कोई कंपनी बोनस शेयर देती है या स्टॉक स्प्लिट करती है, तो शेयर की कीमत में बदलाव होता है, बाजार में हलचल होती है, और कई बार शेयर की डिमांड बढ़ जाती है। यदि आपने यह समझ नहीं रखी कि इन दोनों में क्या अंतर है और उनका क्या प्रभाव है, तो आप गलती से किसी गलत निर्णय पर पहुँच सकते हैं।

कई बार निवेशक यह सोचकर उत्साहित हो जाते हैं कि उन्हें मुफ्त में शेयर मिल रहे हैं, या यह कि शेयर सस्ते हो गए हैं। लेकिन यह जरूरी नहीं कि इसका मतलब उनका पोर्टफोलियो बढ़ गया है। सही जानकारी और विश्लेषण से ही समझदारी के निवेश निर्णय लिए जा सकते हैं।

bonus shares vs stock split

बोनस शेयर क्या होते हैं?

बोनस शेयर की परिभाषा

बोनस शेयर वे अतिरिक्त शेयर होते हैं जो कंपनी अपने मौजूदा शेयरधारकों को मुफ्त में देती है। यानी निवेशक को इन शेयरों के लिए कोई पैसा नहीं देना होता। यह कंपनी की तरफ से एक तरह का “नकद डिविडेंड” का विकल्प होता है, जिसमें कंपनी अपने लाभ को निवेशकों को नकद में न देकर शेयर के रूप में देती है।

बोनस शेयर तब जारी किए जाते हैं जब कंपनी के पास पर्याप्त रिजर्व होते हैं और वह अपनी कमाई को शेयर पूंजी में तब्दील करना चाहती है। इससे न तो कंपनी के कुल मूल्य में कोई बदलाव आता है और न ही निवेशकों के कुल निवेश मूल्य में। बस यह होता है कि हर निवेशक के पास अब ज़्यादा शेयर होते हैं, और हर शेयर की कीमत थोड़ी घट जाती है।

बोनस इश्यू का उदाहरण और प्रक्रिया

मान लीजिए किसी निवेशक के पास ABC कंपनी के 100 शेयर हैं और कंपनी 1:1 बोनस इश्यू घोषित करती है। इसका मतलब हुआ कि हर एक शेयर पर एक अतिरिक्त शेयर मिलेगा। यानी अब उस निवेशक के पास 200 शेयर होंगे, जबकि कंपनी की कुल शेयर संख्या भी दोगुनी हो जाएगी।

शेयर की कीमत भी उसी अनुपात में घट जाएगी। यदि पहले एक शेयर की कीमत ₹200 थी, तो अब वह ₹100 हो सकती है। लेकिन ध्यान दें – कुल निवेश मूल्य वही रहेगा, बस शेयरों की संख्या और प्रति शेयर मूल्य में बदलाव आएगा।

बोनस शेयर जारी करने का उद्देश्य

  • निवेशकों को रिवार्ड देना: बोनस शेयर कंपनी के भरोसे और ताकत का संकेत होते हैं। यह दिखाते हैं कि कंपनी के पास पर्याप्त मुनाफा और रिटेन्ड अर्निंग्स हैं।
  • शेयर की लिक्विडिटी बढ़ाना: बोनस शेयर जारी होने से शेयर बाजार में ट्रेडिंग वॉल्यूम बढ़ सकता है, जिससे शेयर की लिक्विडिटी में इज़ाफा होता है।
  • नकद प्रवाह को बनाए रखना: बोनस देने से कंपनी को नकद खर्च नहीं करना पड़ता, इसलिए यह डिविडेंड देने का किफायती विकल्प होता है।

स्टॉक स्प्लिट क्या होता है?

स्टॉक स्प्लिट की मूलभूत परिभाषा

स्टॉक स्प्लिट वह प्रक्रिया है जिसमें कंपनी अपने मौजूदा शेयरों को छोटे भागों में बाँट देती है। इसका मतलब यह नहीं कि कंपनी नए शेयर जारी कर रही है; बल्कि वह पहले से मौजूद शेयरों को छोटे हिस्सों में तोड़ रही है। इससे शेयर की संख्या बढ़ती है और प्रति शेयर कीमत घट जाती है।

स्टॉक स्प्लिट का एक आम उदाहरण है 2:1 स्प्लिट। इसका मतलब है कि हर 1 शेयर दो में बदल जाएगा। यदि आपके पास 100 शेयर हैं, तो स्प्लिट के बाद आपके पास 200 शेयर हो जाएंगे। लेकिन हर शेयर की कीमत आधी हो जाएगी, जिससे कुल निवेश मूल्य अपरिवर्तित रहेगा।

स्टॉक स्प्लिट के पीछे का तर्क

  • उच्च कीमत वाले शेयरों को सुलभ बनाना: अगर किसी कंपनी के शेयर की कीमत ₹2,000 है, तो छोटे निवेशकों के लिए उसे खरीदना मुश्किल हो सकता है। लेकिन अगर उस शेयर का स्प्लिट हो जाए और उसकी कीमत ₹1,000 हो जाए, तो ज्यादा लोग उसमें निवेश करने को तैयार होंगे।
  • बाजार में सहभागिता बढ़ाना: कम कीमत पर अधिक निवेशक शेयर खरीद सकते हैं, जिससे कंपनी के स्टॉक्स की डिमांड बढ़ती है और ट्रेडिंग वॉल्यूम भी।

वास्तविक उदाहरण और व्याख्या

मान लीजिए XYZ कंपनी का एक शेयर ₹3,000 का है और कंपनी 3:1 स्प्लिट करती है। अब हर शेयर के बदले 3 नए शेयर बनेंगे, यानी 100 शेयर रखने वाले के पास अब 300 शेयर होंगे और प्रति शेयर कीमत ₹1,000 रह जाएगी।

यह प्रक्रिया कंपनी के मूल्य को नहीं बदलती लेकिन निवेशकों के मनोविज्ञान को ज़रूर प्रभावित करती है। लोग यह मानने लगते हैं कि अब शेयर किफायती हो गया है और वे उसमें निवेश करने के लिए उत्साहित हो जाते हैं।

बोनस शेयर और स्टॉक स्प्लिट में मूलभूत अंतर

प्रक्रिया में अंतर

बोनस शेयर की प्रक्रिया में कंपनी अपने रिजर्व से नए शेयर बनाकर उन्हें निवेशकों में वितरित करती है। जबकि स्टॉक स्प्लिट में पहले से मौजूद शेयरों को छोटे हिस्सों में बाँटा जाता है। यानी बोनस इश्यू में शेयर पूंजी बढ़ती है, लेकिन स्टॉक स्प्लिट में पूंजी समान रहती है।

फेस वैल्यू और शेयर पूंजी में अंतर

बोनस इश्यू में शेयर की फेस वैल्यू (Nominal Value) समान रहती है, लेकिन स्टॉक स्प्लिट में वह घट जाती है। उदाहरण के तौर पर, अगर किसी शेयर की फेस वैल्यू ₹10 है और 2:1 स्प्लिट होता है, तो अब नई फेस वैल्यू ₹5 होगी।

उद्देश्य और प्रभाव में अंतर

  • बोनस शेयर: निवेशकों को रिवार्ड देने, कंपनी की फाइनेंशियल स्ट्रेंथ दिखाने और मुनाफे का वितरण करने के लिए जारी किए जाते हैं।
  • स्टॉक स्प्लिट: शेयर को सस्ता और ज्यादा सुलभ बनाने, लिक्विडिटी बढ़ाने और निवेशकों को आकर्षित करने के लिए किया जाता है।

निवेशकों पर इनका प्रभाव

निवेशक के पोर्टफोलियो पर प्रभाव

जब कोई कंपनी बोनस शेयर देती है या स्टॉक स्प्लिट करती है, तो सबसे पहले इसका असर निवेशक के पोर्टफोलियो पर दिखाई देता है। हालांकि कुल निवेश मूल्य में कोई बदलाव नहीं होता, लेकिन निवेशकों के पास अब अधिक शेयर हो जाते हैं। इससे उन्हें यह महसूस होता है कि उनकी होल्डिंग्स बढ़ गई हैं, जो एक मनोवैज्ञानिक लाभ देता है।

मान लीजिए किसी निवेशक के पास 100 शेयर थे और कंपनी ने 1:1 बोनस जारी किया या 2:1 स्प्लिट किया। दोनों ही मामलों में अब निवेशक के पास 200 शेयर होंगे। लेकिन यदि पहले शेयर की कीमत ₹200 थी, तो अब यह घटकर ₹100 हो सकती है। यानि कुल मूल्य ₹20,000 ही रहेगा। फिर भी, लोगों को ऐसा महसूस होता है जैसे उन्हें “कुछ अतिरिक्त” मिला है, और यही बात उनके विश्वास को बढ़ाती है।

कई बार बोनस शेयर मिलने पर लोग भविष्य में मुनाफा कमाने की उम्मीद में स्टॉक्स को लंबे समय तक होल्ड करते हैं, जिससे शेयर पर लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन का फायदा मिल सकता है।

बाजार में लिक्विडिटी पर असर

बोनस शेयर और स्टॉक स्प्लिट, दोनों ही शेयर बाजार में लिक्विडिटी को बढ़ावा देने का काम करते हैं। लिक्विडिटी का मतलब है शेयर का आसानी से खरीदा और बेचा जाना। जब किसी स्टॉक की कीमत बहुत अधिक हो जाती है, तो उसे खरीदने वाले कम हो जाते हैं। ऐसे में स्टॉक स्प्लिट उस समस्या को हल करता है।

वहीं बोनस शेयर के जरिए शेयरों की संख्या बढ़ती है, जिससे मार्केट में शेयर ज्यादा उपलब्ध हो जाते हैं और ट्रेडिंग वॉल्यूम में इजाफा होता है। जब शेयरों का वॉल्यूम बढ़ता है, तो यह संकेत देता है कि उस स्टॉक में निवेशकों की रुचि बनी हुई है।

इससे शेयर की कीमत में स्थिरता आती है और वोलैटिलिटी यानी उतार-चढ़ाव कम होता है। इससे शेयर बाजार अधिक स्थिर बनता है और नए निवेशकों को आकर्षित करता है।

दीर्घकालिक निवेश दृष्टिकोण से मूल्यांकन

दीर्घकालिक निवेशक बोनस शेयर और स्टॉक स्प्लिट को दो महत्वपूर्ण घटनाओं के रूप में देखते हैं। क्यों? क्योंकि ये संकेत देते हैं कि कंपनी अपने शेयरधारकों को लंबे समय तक साथ रखना चाहती है और उसकी आर्थिक स्थिति मजबूत है।

स्टॉक स्प्लिट के बाद यदि कंपनी लगातार बेहतर प्रदर्शन करती है, तो शेयर की कीमत फिर से बढ़ सकती है और यह निवेशकों को बड़ा रिटर्न दे सकता है। उदाहरण के तौर पर Apple और Tesla जैसे कई वैश्विक ब्रांड्स ने कई बार स्टॉक स्प्लिट किए हैं और हर बार उनके स्टॉक्स ने अच्छा प्रदर्शन किया है।

बोनस शेयर भी निवेशकों को लॉन्ग टर्म गेन का मौका देते हैं। हालांकि EPS (प्रति शेयर लाभ) कम हो जाता है, लेकिन अगर कंपनी की ग्रोथ स्ट्रॉन्ग रहती है, तो बोनस शेयर के साथ-साथ निवेशकों को डिविडेंड और मूल्य वृद्धि दोनों का लाभ मिलता है।

क्यों कंपनियां बोनस शेयर या स्टॉक स्प्लिट करती हैं?

कंपनियां बोनस शेयर क्यों जारी करती हैं?

बोनस शेयर कंपनी द्वारा अपने निवेशकों को पुरस्कृत करने का एक तरीका है। जब कोई कंपनी अपने रिजर्व फंड को शेयर पूंजी में बदल देती है, तो वह बोनस शेयर जारी कर सकती है। इसका मुख्य उद्देश्य यह होता है कि कंपनी निवेशकों को अतिरिक्त लाभ देना चाहती है लेकिन नकद डिविडेंड की जगह शेयरों के रूप में।

इसके पीछे कुछ मुख्य कारण हैं:

  1. रिटेन्ड अर्निंग्स का प्रभावी उपयोग: कंपनियां अपने पास जमा मुनाफे को शेयर पूंजी में बदलती हैं ताकि वह निष्क्रिय न पड़ा रहे।
  2. शेयरधारकों में विश्वास बनाए रखना: जब निवेशकों को मुफ्त में शेयर मिलते हैं, तो वे कंपनी पर और अधिक विश्वास करते हैं।
  3. लंबी अवधि में शेयर मूल्य वृद्धि का अवसर देना: अधिक शेयरों के साथ, अगर कंपनी लगातार अच्छा प्रदर्शन करती है, तो दीर्घकाल में शेयरधारकों को भारी लाभ हो सकता है।

स्टॉक स्प्लिट क्यों किया जाता है?

जब किसी कंपनी के शेयर की कीमत बहुत अधिक हो जाती है, तो वह छोटे निवेशकों की पहुंच से बाहर हो जाती है। ऐसे में कंपनी स्टॉक स्प्लिट का निर्णय लेती है ताकि वह अपने स्टॉक्स को अधिक सुलभ बना सके।

स्टॉक स्प्लिट से कंपनी को निम्नलिखित लाभ मिलते हैं:

  1. नए निवेशकों को आकर्षित करना: कम कीमत के कारण नए निवेशक स्टॉक खरीदने में रुचि दिखाते हैं।
  2. लिक्विडिटी में सुधार: शेयरों की संख्या बढ़ने से अधिक लोग खरीद-बेच कर सकते हैं, जिससे बाजार में उसका प्रभाव बढ़ता है।
  3. मनोवैज्ञानिक लाभ: जब स्टॉक का भाव कम हो जाता है, तो निवेशक उसे “सस्ता” समझकर खरीदने लगते हैं, जिससे मांग बढ़ती है।

फायदे और संभावित नुकसान

बोनस शेयर के फायदे

  • बिना अतिरिक्त खर्च के शेयर वृद्धि: निवेशकों को मुफ्त में अतिरिक्त शेयर मिलते हैं।
  • मनोवैज्ञानिक संतुष्टि: निवेशकों को यह लगता है कि उन्हें कुछ अतिरिक्त मिला है, जिससे वे कंपनी के प्रति वफादार रहते हैं।
  • शेयर लिक्विडिटी में इजाफा: अधिक शेयर मार्केट में आने से ट्रेडिंग वॉल्यूम बढ़ता है।
  • लंबी अवधि में लाभ की संभावना: अगर कंपनी ग्रोथ दिखाती है, तो बोनस शेयर भविष्य में बड़ा रिटर्न दे सकते हैं।

बोनस शेयर के नुकसान

  • EPS में गिरावट: शेयरों की संख्या बढ़ने से प्रति शेयर मुनाफा घट जाता है।
  • तुरंत नकद लाभ नहीं मिलता: यह नकद डिविडेंड का विकल्प है, लेकिन इससे निवेशकों को कोई सीधा वित्तीय लाभ नहीं होता।
  • नकद प्रवाह की कमी की धारणा: कुछ निवेशक मान सकते हैं कि कंपनी के पास कैश की कमी है, इसलिए डिविडेंड की बजाय बोनस दे रही है।

स्टॉक स्प्लिट के फायदे

  • शेयर सस्ते हो जाते हैं: इससे नए और छोटे निवेशक भी निवेश कर सकते हैं।
  • मार्केट में सक्रियता बढ़ती है: ट्रेडिंग वॉल्यूम और डिमांड में इजाफा होता है।
  • बाजार में सकारात्मक संकेत: निवेशकों को लगता है कि कंपनी विकास के पथ पर है।

स्टॉक स्प्लिट के नुकसान

  • कीमत में अस्थिरता: स्प्लिट के बाद शेयर की कीमत में वोलैटिलिटी बढ़ सकती है।
  • मूल्यांकन भ्रम: निवेशक सस्ते शेयर को अच्छा समझ सकते हैं, जबकि जरूरी नहीं कि वह स्टॉक बेहतर प्रदर्शन करे।
  • प्रशासनिक लागत: प्रक्रिया में कुछ अतिरिक्त लागत और दस्तावेजी प्रक्रिया होती है।

गलतफहमियाँ और आम धारणाएं

गलतफहमी: बोनस शेयर और स्टॉक स्प्लिट से संपत्ति बढ़ती है

बहुत से नए निवेशक यह मानते हैं कि जैसे ही कोई कंपनी बोनस शेयर देती है या स्टॉक स्प्लिट करती है, उनकी संपत्ति यानी कुल निवेश मूल्य बढ़ जाता है। लेकिन यह पूरी तरह से एक भ्रम है। वास्तव में, इन प्रक्रियाओं से आपके पास शेयरों की संख्या तो बढ़ जाती है, लेकिन प्रति शेयर कीमत उसी अनुपात में घट जाती है।

उदाहरण के तौर पर, यदि आपके पास 100 शेयर हैं जिनकी कीमत ₹200 है, तो कुल मूल्य ₹20,000 हुआ। अब यदि कंपनी 1:1 बोनस देती है या 2:1 स्प्लिट करती है, तो आपके पास 200 शेयर हो जाएंगे लेकिन हर शेयर की कीमत घटकर ₹100 रह जाएगी। कुल मूल्य फिर भी ₹20,000 ही रहेगा।

इसलिए, यह समझना जरूरी है कि ये कॉर्पोरेट निर्णय केवल संख्या में बदलाव लाते हैं, असल निवेश मूल्य में नहीं।

गलतफहमी: स्टॉक स्प्लिट बोनस शेयर से बेहतर है

कई निवेशकों को लगता है कि स्टॉक स्प्लिट, बोनस शेयर से अधिक फायदेमंद है क्योंकि इससे शेयर सस्ते हो जाते हैं और बाजार में ज्यादा लोग खरीद सकते हैं। लेकिन यह धारणा पूरी तरह सही नहीं है।

दोनों प्रक्रियाओं के अपने उद्देश्य और उपयोग हैं। बोनस शेयर आमतौर पर तब दिए जाते हैं जब कंपनी के पास अतिरिक्त लाभ होता है जिसे वह निवेशकों के साथ शेयर करना चाहती है। वहीं स्टॉक स्प्लिट तब किया जाता है जब शेयर की कीमत अधिक हो जाती है और कंपनी उसे छोटे निवेशकों के लिए सुलभ बनाना चाहती है।

इसलिए यह कहना कि कोई एक प्रक्रिया हमेशा बेहतर है, एक अधूरी समझ को दर्शाता है।

गलतफहमी: इन निर्णयों से कंपनी की वैल्यू बदलती है

एक और आम गलतफहमी यह है कि बोनस शेयर या स्टॉक स्प्लिट से कंपनी का बाजार मूल्य (Market Capitalization) बदल जाता है। लेकिन सच्चाई यह है कि इन दोनों प्रक्रियाओं में कंपनी की कुल पूंजी वैसी ही बनी रहती है।

हालांकि, निवेशकों की सोच और व्यवहार में बदलाव आ सकता है, जिससे शेयर की डिमांड और ट्रेडिंग वॉल्यूम में उतार-चढ़ाव होता है। इस कारण से कभी-कभी शेयर की कीमत थोड़ी बहुत ऊपर-नीचे हो सकती है, लेकिन यह बदलाव स्थायी नहीं होता।

निष्कर्ष

बोनस शेयर और स्टॉक स्प्लिट, दोनों ही ऐसे कॉर्पोरेट एक्शन हैं जो निवेशकों के लिए आकर्षक और प्रभावशाली साबित हो सकते हैं — बशर्ते उन्हें सही तरीके से समझा जाए। दोनों ही प्रक्रियाओं में निवेशकों को अतिरिक्त शेयर मिलते हैं, लेकिन कुल निवेश मूल्य में कोई वास्तविक वृद्धि नहीं होती।

बोनस शेयर आमतौर पर कंपनी की मजबूत वित्तीय स्थिति और शेयरधारकों को रिवॉर्ड देने के इरादे से दिए जाते हैं। वहीं स्टॉक स्प्लिट का उद्देश्य शेयर को और अधिक सुलभ बनाना होता है ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग उसमें निवेश कर सकें।

इन निर्णयों से शेयर की संख्या तो बढ़ती है, लेकिन फेस वैल्यू, EPS, और बाजार व्यवहार पर अलग-अलग प्रकार का प्रभाव पड़ता है। इसीलिए, एक जागरूक निवेशक के रूप में आपको यह समझना जरूरी है कि केवल संख्या नहीं, बल्कि शेयर की क्वालिटी और कंपनी की संभावनाएं ही असली निवेश मूल्य को दर्शाती हैं।

आखिर में, चाहे आप बोनस शेयर पा रहे हों या किसी स्टॉक स्प्लिट का फायदा उठा रहे हों — यह तय करता है कि आप उस कंपनी पर कितना विश्वास करते हैं और उसमें दीर्घकालिक संभावना देखते हैं या नहीं।

FAQs (अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न)

क्या बोनस शेयर मिलने से टैक्स लगता है?

बोनस शेयर मिलने पर तुरंत टैक्स नहीं लगता, लेकिन जब आप उन्हें बेचते हैं तब कैपिटल गेन टैक्स लगता है।

क्या स्टॉक स्प्लिट के बाद शेयर की कीमत हमेशा बढ़ती है?

नहीं, शेयर की कीमत का बढ़ना कंपनी के प्रदर्शन पर निर्भर करता है, स्प्लिट केवल कीमत को छोटा करता है।

क्या बोनस शेयर और स्टॉक स्प्लिट दोनों एक साथ हो सकते हैं?

हां, कई बार कंपनियां दोनों निर्णय साथ में ले सकती हैं लेकिन ऐसा बहुत कम होता है।

EPS बोनस शेयर से क्यों घटता है?

क्योंकि अब मुनाफा अधिक शेयरों में बांट दिया जाता है, जिससे प्रति शेयर मुनाफा (EPS) कम हो जाता है।

मुझे किसमें निवेश करना चाहिए – बोनस देने वाली कंपनियों में या स्प्लिट करने वाली कंपनियों में?

इसका उत्तर कंपनी के फंडामेंटल्स और भविष्य की ग्रोथ पर निर्भर करता है, सिर्फ बोनस या स्प्लिट को देखकर निवेश न करें।

Author

  • BULLISH BUNCH LOGO

    मैं पिछले तीन सालों मार्केट के बारे में सीखी हुई बातों को आसान शब्दों मे बताने की कोशिश कर रहा हूँ।

Leave a Comment